द्रव्यगुण कि परिभाषा -- द्रव्यो के नाम रुप
गुण कर्म और प्रयोग का सर्वांगीण विवेचना जिश
शास्त्र मे हो उसे द्रव्य गुण कहते है।
शास्त्र मे हो उसे द्रव्य गुण कहते है।
द्रव्यगुण का महत्व और
प्रयोजन – मनुष्य और अन्य प्राणियो को
अपने शरीर कि रक्षा के लिए नाना प्रकार के द्रव्यो का आहार रुप मे उपयोग करते है।
जिसके फलस्वरुप अनेक शरीरगत दोषो मे निरन्तर परिवर्तन होता रहता है।
इन दोषो मे निरन्तर वैषम्पर (उतार- चढाव) होने के कारण नाना
प्रकार के व्याधियो से ग्रस्त हो जाता है। द्रव्य के माध्यम से क्षीर्ण एवं वृध्द
दोषो को क्रमश: वर्धन एवं क्षरन (क्षीणकरना) साम्यावस्था मे लाने के लिए द्रव्यो
का प्रयोग किया जाता है
द्रव्य और शरीर दोनो ही पंच भौतिक है।
विभाग – द्रव्यगुण विज्ञान दो भाग मे बाटा गया है।
(1)
पदार्थ विज्ञान
(2)
द्रव्य विज्ञान
(1) पदार्थ विज्ञान – इस विज्ञन के अन्तर गत द्रव्यो के गुण रस विर्य विपाक प्रभाव एवं कर्म का
सैध्दांतिक निरुपण किया जाता है। इसे basic
consept कहते है।
(2) द्रव्य विज्ञान – इसमे द्रव्यो का अध्ययन किया जाता है। जिसके निम्नलिखित तीन भाग है।
(1)
नाम रुप विज्ञान
(2)
संयोग विज्ञान
(3)
योग विज्ञान
(1)
नाम रुप विज्ञान – द्रव्यो का नाम जाती कुल स्नरुप आदी का परिचय किया जाता तथा
उनकि स्थुल रचना वनस्पति विवरण एवं उत्तकिय संरचना तथा द्रव्यो कि प्रकिति पर
देशकाल आदि का प्रभाव का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
(2)
संयोग विज्ञान – इसके अन्तरगत विभिन्न द्रव्यो के संयोग तथा उनकी विविध
कल्पना का वर्णन किया जाता है।
(3)
संयोग विज्ञान – इसके अन्तर गत द्रव्यो की मात्रा काल आदि का विचार किया
जाता है। इसके दो भाग है।
(1)
गुण कर्म विज्ञान (2)
प्रयोग विज्ञान
(1)
गुण कर्म विज्ञान – इसके अन्तर गत द्रव्य के गुण तथा विभिन्न शरीर अवयवो पर
उनके कर्म का अध्ययन होता है।
(2)
प्रयोग विज्ञान – इसमे गुण कर्म के आधार पर द्रव्यो का विभिन्न रोगो मे
युक्ति पुर्वक प्रयोग बताया जाता है।
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