विरेचन के प्रकार –
1 मृदु विरेचन – इनके द्वारा मल मुलायम होता है और परिसरण गति थोडी बढ जाती
है। इसमे मल अपक्व नही आता है। जैसे- अम्ल तास एरण्ड तैल गन्धक उजीर आलु बुखार
जैतुन के तैल आदि।
2 सुख विरेचन – ये न अत्यन्त मृदु होते है और न अत्यन्त तिक्ष्ण अत: सुख
पुर्वक दोषो का निर्दरण करते है। इसके द्वारा पक्व तथा अपक्व दोनो मल निकलते है।
इसे सर्षव कहते है। जैसे – एतुआ रेवन्तचीनी आदि।
3 तिक्ष्ण विरेचन – ये सबकी अपेक्षा तिक्ष्ण होते है इनकि क्रिया तिव्र होती
है। इनसे आत मे दाह एवं मरोण होकर पतला मल निकलता है। जैसे – जलापा, जयपाल, इन्द्रायणी,
स्नुही आदि।
4 पित्त विरेचन – इन द्रव्यो कि पित्तासय और ग्रहणी पर उत्तेजक क्रिया होती
है जिससे पित्त अधिक मात्रा मे श्रावित होकर मल के साथ बाहर निकलता है जिससे पिजित
मल का भेदन होता है। जैसे – पारद एग्लुआ कुटका आदि।
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