द्रव्य कर्म
तृप्तिघ्न – माशय कफ से भरा होने के कारण पेट भरा-भरा लगता है और रोगी
को खाने कि इच्छा नही करता है और भोजन से द्वेष दोने सगता है।
इस विकार को नष्ट करने वाला
द्रव्य तृप्तिघ्न कहलाता है, जैसे शुण्ठी, मरिच चित्रक।
ये द्रव्य उष्ण व्र्य वाले
रूक्ष गुण स्वाद मे कटू, तिक्त, कषाय रस वाले होते है।
दीपन – जिन औषधियो से जठराग्नि दिप्त होति है उसे दिपन कहते है।
उपयोग – मंदाग्नि से पिडित रोगी मे भूख कम हो जाती है । जिससे वह
भोजन कम करता है। दिपन औषधि के प्रभाव से रोगी का भुख बढती है परन्तु इससे अन्न का
पाचन नही होता है।
गुण – ये द्रव्य अग्नेय स्वभाव कटु अम्ल लवण रस उष्ण वीर्य
तिक्ष्ण उष्ण गुण युक्त होते है.
जैसे— सैफ मरिच औद्रक (पाचन
क्रिया के लिए)।
पाचन— जो औषधिया आभासयीक रसका स्राव बढा कर आहार का पाचन करे उसे
पाचक या पाचन औषधि कहते है।
इन औषधियो से आहार का पाचन
होता है किन्तु अग्नि का दिपन नही होता है।
उपयोग – इनका उपयोग वहा किया जाता है जहा भुख तो लगति है पर आहार का
पाचन नही होता है। ये द्रव्य आग्नेय ह्रव्य कहलाते है।
नोट – कुछ द्रव्य दीपन और पातन दोनो क्रम करते है, जैसे- चित्रक ।
विदाही – जो द्रव्य पच्च मानावस्था (जब खाना पच रहा होता है।) मे
पित्त का अधिक प्रकोप एवं तज्जन विदाह (जलन) उत्पन्न करता है। उसे विदाहि कहते है।
तिक्ष्ण उष्णविर्य एवं कटु
अम्ल लवण द्रव्य विदाही होते है।
विदाह शामक – जो द्रव्य आमाशय के विदाह (जलन) सान्त करे उसे विदाह शामक कहते है। ये दिरव्य
पित्त शामक होते है। ये निम्न प्रकार से काम करते है।
(1)
पित्त का द्रवत्व कम करके
पटोल गुडुचि तिक्त द्रव्य ये वात प्रधान होने के कारण द्रवत्व का शोषण करते है।
इसी को अवशोषण कहा गया है।
(2)
पित्त कि उष्णता तिक्ष्णता
का शमन करके जैसे नारिकेल आमलकी(आम के छिलके से बनता है।) आदि पित्त का शामक
द्रव्य है।
वमन – जो द्रव्य आमाशय मे स्थित अपक्व अन्न श्लेष्मा एवं पित्त
आदि दोषो को मुख मार्ग से बाहर निकाले उसे वमन कहते है। जैसे मदन फल
ये द्कव्य सर्व रस, उष्ण
वीर्य, तिक्ष्ण सुक्ष्म गुण युक्त व्यवायी विकासी एवं अग्नि और वायु युक्त होते
है। अग्नि और वायु ये दोनो महाभुत लघु होने के कारण उध्र्व गामी होते है और अपने
साथ-साथ शरीर दोषो को भी बाहर निकालते है।
उपयोग – इन औषधियो का निम्न लिखित विकारो मे प्रयोग किया जाता है।
(1)
गला तथा ग्रास नली से सल्य
को निकालने के लिए।
(2)
आमाशय से दोष या विष के निरहरण
के लिए।
(3)
कुण्ठ श्लीपद आदि के विकार
मे।
उत्तेजना अधिस्ठान से वमन
द्रव्य दो प्रकार के होते है।
स्थानिक – सषर्प और तुत्थ
आदि।
केन्द्रिय – अहिफेन (अफिम)
आदि।
छर्दिनिग्रहण (ANTIEMETIC) – ऐसी औषधिया जो उल्टि को रोके तथा कारण भुत दोषो
को शान्त करे उसे छर्दिनिग्रहण कहते है, जैसे जम्बु, आम्र पल्लव आदि।
आधुनिक दृष्टि से ये दो प्रकार के होते है।
स्थानिकस – जम्बु, आम्र
पल्लव आदि।
केन्द्रिय – सुची आदि।
वातानुलोमन – अपान वायु को या कोष्ठ वायु को निचे कि ओर मल मे पवित्र
करने वाले द्रव्य अनुलोमन कहलाते है। वायु कि प्रतिलोम होने से विवन्ध सहोजाता है।
उसका वेधन अनुलोमन तो करते है किन्तु मल पातन नही करते है।, जैसे शुण्ठी।
विष्टम्भि – विष्टम्भी द्रव्य कोष्ठ मे अधिक वात उत्पन्न कर आध्यमान आदि करते है।, जैसे
कटफल आदि।
पुरिषजनन – जो द्रव्य पुरिष को अधिक मात्रा मे उत्पन्न करे उसे
पुरिषजनन कहते है। जैसे उङद, यव आदि इसका पुरिष
क्षय मे प्रयोग किया जाता है।
विरेचन – जो द्रव्य अधोमार्ग या गुदा से मल को बाहर निकले उसे विरेचन
या अधोभागहर कहते है।
इसके द्वारा अपक्व या
पक्व पुरिष दोष उदागमल से बाहर निकल आते है