विष कि परिभाषा – जो द्रव्य प्राणी के शरीर के वाह्य अथवा
आन्तरिक रूप मे आने पर उसमे सिघ्रता से व्याप्त हो जाता है या मनोदैहिक विषाद
उत्पन्न करके या प्राणो को हर ले विष कहते है।
आधुनिक मतानुसार – आधुनिक मतानुसार किसी भी द्रव्य को रूप विष का
होना या ना होना द्रव्य कि मात्रा पर निर्भर करता है
डा. सी. के. पाठक के अनुसार – ऐसा पदार्थ जो
शरीर मे श्वास मार्ग या मुख मार्ग प्रविष्ट होने पर शरीर को हानी पहुचाने की क्षमता
रखता है, उसे विष कहते है।
विष का प्रभाव – आचार्य चरक के विष के गुणो को विस्तार पूर्वक
बताया है। विष रूक्ष गुण वाला बताया है। प्रकोपित करता है।
विष के गुण प्रकोपित स्थान
रस कफ
रूक्ष वात
उष्ण पित्त
तिक्ष्ण मर्म
लघु रूक्षनाशु विषदं
न्यवादितिक्ष्णम विकाषि सुक्ष्म उष्णमनिदैश्यरंस दशगुण मुक्त विष तजो।।
जो गुण जितना अधिक
बलशाली होगी विष का मारक्ता उतनी ही अधिक होगी।
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