शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

अगद तंत्र

अगद तंत्र ­अगद तंत्र चिकित्सा शास्त्र की वह शाखा है जो प्राणी के मनोदैहिक तन्त्र कि विषो से रक्षा करता है।
सुश्रुत के अनुसार परिभाषा – जिसमे सर्प दंस कीट मकडी से डसे हुए तथा अन्य विविध प्राकार के स्वाभाविक कृत्रिम विष से ग्रसित प्राणियो के समन निदान चिकित्सा का विज्ञान का वर्णन किया गया है।
अगद तन्त्र नाम सर्पकीट लूता भूषिकादीदष्टा विष व्यञ्ज नार्थ विविध संयोगे पश्मानार्थस्च।।
हरित संहिता के अनुसार परिभाषा –­ साप विच्छू और मकङी के विषो के नाश करने वाली क्रिया को विष तन्त्र कहते है।
अगद तन्त्र या पाश्चात्य विष विज्ञान
SCOPE OF TOXICOLOGY  :-- इसके अन्तर्गत विष का स्वरूप उनके स्रोत, भेद, अपभेद गुणर्धम लक्षण एवं जिन प्राणीयो पर एवं विषदंश से उत्पन्न नैतिक एवं वैधानिक समस्या मे चिकित्सा के कर्तव्य विष का चिकित्सात्मक उपयोग उनसे सम्बन्धित कानून विषाक्त्ता से उत्पन्न व्यक्तिगत एवं समुदायिक समस्याये है।
अगद तंत्र का प्रयोजन एवं उसकी उपयोगिता ­– आयुर्वेद के समान ही अगद तन्त्र के दो प्रमुख प्रयोजन है।
(1)    स्वश्थ प्राणीयो की विष के प्रभाव से रक्षा।
(2)    विषाक्तता से ग्रसित प्राणियो का कष्ट निवारण कर उन्हे आरोग्य प्रदान करना।
विष कि निरूक्ति इसका अर्थ होता है वेष्ढित या व्याप्त करना (जो शीध्रता से फैलता है)।
विष कि निरूक्ति
(1)    श्री मत् भागवत गीता मे वर्णन मिलता है। जब देवता और दैत्य अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे तो अमृत से पहले विष की उत्पत्ति हई जिससे कि सभी प्राणी विषाद ग्रष्त होने लगे इसके उपाय के लिए भगवान शिव से प्रार्थना कर विष पान करने का आग्रह किया भगवान शिव कब विष का पान कर रहे थे तब विष कि कुछ बुदे पृथ्वी पर गिर गयी उन्ही विन्दुओ को ग्रहण कर जीव जन्तु अथवा वनस्पती विषाक्त हो गये इस प्रकार पृथ्वी पर विष की उत्पत्ती हुई।
(2)    जब ब्रन्हा जी सृष्टी का निर्माण कर रहे थे तब कैटभ नामक दैत्य उनकी कार्य मे बाधा उत्पन्न करने लगा तब स्वयं तेज स्वरूप ब्रह्मा जी का क्रोध ध्रुव पुरुष धारण करके उत्पन्न हुआ जिससे घोर गर्जना करते हुए कैटभ का वध कर दिया।
तत्त पश्चात उस शरीर का क्रोध स्वरूप बढने लगा इसके इस रूप से देवताओ मे विषाद उत्पन्न हुआ इस कारण इसका नाम विष हो गया
ब्रम्हा जी ने इसे दो भागो मे बाटा है।
(1)    स्थावर

(2)    जांग्डम

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