शनिवार, 30 सितंबर 2017

जान्गम विष अधिष्ठान

जान्गम विष अधिष्ठान – इस विष के 16 अधिश्ठान बताये गये है।
(1)    दृष्टि एवं नि:श्वास – दिव्य सर्प
(2)    दृष्टा एवं नख विष – भौम सर्प
(3)    दृष्टा एवं नख निष – बिल्ली कुक्कुर वानर मकर प्रचालक गोधा चतुष्पाद कीट
(4)    मल मुत्र विष – तोटक पर्चकिट
(5)    शुक्र विष – मुशक
(6)    मुख पुरिष मुखसंदश शुक्र आर्तव विष – लुता
(7)    मुख संदश मल मुत्र विष – सराव कुर्दिशत दारुकारी
(8)    मुखसंदस विष ­­­­– कणभ जलौका
(9)    अस्थि विष – विषमृत प्राणि कि अस्थि सर्प का दांत

(10)शव विष – किट सर्प

गुरुवार, 28 सितंबर 2017

विष का वर्गीकरण

विष का वर्गीकरण – आचार्य चरक के अनुसार विष दो प्रकार के होते है।
जांगम – जो जन्तुओ से प्राप्त हो।
स्थावर – वनस्पति खनिज विष
सुत्रुत संहिता के अनुसार – सुत्रुत संहिता के अनुसार विष दो प्रकार के होते है।
जांगम – 16 अधिस्ठान
स्थावर –- 10 अधिस्ठान
चरक व सुश्रुत
जांगम                                 संयोजक                             स्थावर
­­गर विष                                                            कृत्रिम विष
( विष रहित द्रव्यो के संयोग से)                            ( विष द्रव्यो के संयोग से)

विष के अधिष्ठान --- विष के दो अधिष्ठान होते है।
(1)   स्थावर विष अधिष्टान
(2)   जांगम विष अधिष्ठान
(1)   स्थावर विष अधिष्ठान –
मूलं पत्रं फलं पुष्पं त्वक् क्षीर सार एव च ।
निर्यासो धात व त्रैव कन्दत्र दशम: स्मृत: ।।
स्थावर विष के दश अधिस्ठान है, मुल फल पत्र त्वक क्षीर सार निर्यास धातु एवं कन्द।
इन प्रत्येक दस अधिस्ठानो मे आने वाले विषो का वर्णन अस प्रकार है।
मुल विष – क्लीतक करविर गुन्जा सुगन्ध, गर्गरक, करघाट लाइलि।
पत्र विष – विष पत्रिका वरदारू लम्बा करम्भ महा करम्भ
फल विष – कुमुदवती वेणुका करम्भ महा करम्भ कर्वे कर्कोटक रेणक खघातेक चर्मरि सर्पघाती नन्दन सारपाक
पुष्प विष ­­­---  वेल कादम्ब वल्लीज करम्भ महा करम्भ ।
त्वक विष, सार विष, विर्यास विष – अन्नपाक कर्टरिय सौरीयक करघाट करम्भ नन्दन नराचक
क्षीर विष – कुमुघ्नी स्नुही जल छीरी ।
धातु विष – फेनास्म, हरताल।
कन्द विष – कालकुट वत्सनाभ सर्षप पालक कर्दभक वैराटक युस्तक प्रपुडरिक मुलक हालाहल महाविष कर्कटक।


सोमवार, 25 सितंबर 2017

विष के गुण

विष के गुण – आचार्य चरक के अनुसार विष के 10 गुण है।
(1)    लघु – यह गुण शरीर मे लेखन कर्म गुस्सा का आभाव करता है यह शिघ्र पाकि ( पचने वाला) होता है।
(2)    रूक्ष – जो गुण अस्निग्ध अथवा परस व इसी प्रकार के गुणो कि शरीर मे वृद्धी करे ये परम वातक कारक है।
(3)    आशू – जो शिघ्र हि क्रिया करे या व्याप्त हो जाये जिस प्रकार के त्वरित गति से जाल पर तैल डालने पर फैल जाता है।
(4)    विशद – जो विमल हो कार्य के आधार पर ये शारीरीक कलेद (स्नेह) का शोषण होता है।
(5)    व्यवायी – इसका शाब्दिक अर्थ है शीघ्र इस गुण के कारण द्रव्य सम्पूर्ण शरीर मे फैल जाता है वय लक्षण उत्पन्न करता है।
(6)    तिक्ष्ण – इसका अर्थ होता है शीघ्र कार्यकरी या शस्त्र की भाती कार्य करने वाला है।
(7)    विकासी – यह शरीर मे धातु और ओज को प्रभावित करता है सन्धि वन्धनो को शिथिल करने वाला है
(8)    सुक्ष्म – इसका अर्थ अणु या अल्प द्रव्य का देह के शुक्ष्म छिद्रो मे प्रवेश कर पाना है।
(9)    उष्ण – यह गुण रक्तादी को उत्पन्न करने स्तम्भ या जङता मे मुर्छा तृष्णा स्वेद होता है।       
(10)अनिदेश्यरस – जिसका श्वाद बतलाया न जा सके ।
(11)मदावह – यह गुण व्यक्ति का लोप कर देता है मोह एवं विश्रम कि स्थिती उत्पन्न कर देता है ।

(12)अपाकी – जिसका शरीर मे प्रविष्ट होने पर पाचन न हो सके ।

शनिवार, 23 सितंबर 2017

विष कि परिभाषा (DEFINITATIO9N OF POISION)

विष कि परिभाषा – जो द्रव्य प्राणी के शरीर के वाह्य अथवा आन्तरिक रूप मे आने पर उसमे सिघ्रता से व्याप्त हो जाता है या मनोदैहिक विषाद उत्पन्न करके या प्राणो को हर ले विष कहते है।
आधुनिक मतानुसार – आधुनिक मतानुसार किसी भी द्रव्य को रूप विष का होना या ना होना द्रव्य कि मात्रा पर निर्भर करता है
डा. सी. के. पाठक  के अनुसार – ऐसा पदार्थ जो  शरीर मे श्वास मार्ग या मुख मार्ग  प्रविष्ट होने पर शरीर को हानी पहुचाने की क्षमता रखता है, उसे विष कहते है।
विष का प्रभाव – आचार्य चरक के विष के गुणो को विस्तार पूर्वक बताया है। विष रूक्ष गुण वाला बताया है। प्रकोपित करता है।
      विष के गुण                            प्रकोपित स्थान
रस                                  कफ
रूक्ष                                 वात
उष्ण                                 पित्त
तिक्ष्ण                                मर्म
लघु रूक्षनाशु विषदं न्यवादितिक्ष्णम विकाषि सुक्ष्म उष्णमनिदैश्यरंस दशगुण मुक्त विष तजो।।
जो गुण जितना अधिक बलशाली होगी विष का मारक्ता उतनी ही अधिक होगी।

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

अगद तंत्र

अगद तंत्र ­अगद तंत्र चिकित्सा शास्त्र की वह शाखा है जो प्राणी के मनोदैहिक तन्त्र कि विषो से रक्षा करता है।
सुश्रुत के अनुसार परिभाषा – जिसमे सर्प दंस कीट मकडी से डसे हुए तथा अन्य विविध प्राकार के स्वाभाविक कृत्रिम विष से ग्रसित प्राणियो के समन निदान चिकित्सा का विज्ञान का वर्णन किया गया है।
अगद तन्त्र नाम सर्पकीट लूता भूषिकादीदष्टा विष व्यञ्ज नार्थ विविध संयोगे पश्मानार्थस्च।।
हरित संहिता के अनुसार परिभाषा –­ साप विच्छू और मकङी के विषो के नाश करने वाली क्रिया को विष तन्त्र कहते है।
अगद तन्त्र या पाश्चात्य विष विज्ञान
SCOPE OF TOXICOLOGY  :-- इसके अन्तर्गत विष का स्वरूप उनके स्रोत, भेद, अपभेद गुणर्धम लक्षण एवं जिन प्राणीयो पर एवं विषदंश से उत्पन्न नैतिक एवं वैधानिक समस्या मे चिकित्सा के कर्तव्य विष का चिकित्सात्मक उपयोग उनसे सम्बन्धित कानून विषाक्त्ता से उत्पन्न व्यक्तिगत एवं समुदायिक समस्याये है।
अगद तंत्र का प्रयोजन एवं उसकी उपयोगिता ­– आयुर्वेद के समान ही अगद तन्त्र के दो प्रमुख प्रयोजन है।
(1)    स्वश्थ प्राणीयो की विष के प्रभाव से रक्षा।
(2)    विषाक्तता से ग्रसित प्राणियो का कष्ट निवारण कर उन्हे आरोग्य प्रदान करना।
विष कि निरूक्ति इसका अर्थ होता है वेष्ढित या व्याप्त करना (जो शीध्रता से फैलता है)।
विष कि निरूक्ति
(1)    श्री मत् भागवत गीता मे वर्णन मिलता है। जब देवता और दैत्य अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे तो अमृत से पहले विष की उत्पत्ति हई जिससे कि सभी प्राणी विषाद ग्रष्त होने लगे इसके उपाय के लिए भगवान शिव से प्रार्थना कर विष पान करने का आग्रह किया भगवान शिव कब विष का पान कर रहे थे तब विष कि कुछ बुदे पृथ्वी पर गिर गयी उन्ही विन्दुओ को ग्रहण कर जीव जन्तु अथवा वनस्पती विषाक्त हो गये इस प्रकार पृथ्वी पर विष की उत्पत्ती हुई।
(2)    जब ब्रन्हा जी सृष्टी का निर्माण कर रहे थे तब कैटभ नामक दैत्य उनकी कार्य मे बाधा उत्पन्न करने लगा तब स्वयं तेज स्वरूप ब्रह्मा जी का क्रोध ध्रुव पुरुष धारण करके उत्पन्न हुआ जिससे घोर गर्जना करते हुए कैटभ का वध कर दिया।
तत्त पश्चात उस शरीर का क्रोध स्वरूप बढने लगा इसके इस रूप से देवताओ मे विषाद उत्पन्न हुआ इस कारण इसका नाम विष हो गया
ब्रम्हा जी ने इसे दो भागो मे बाटा है।
(1)    स्थावर

(2)    जांग्डम